Friday, July 6, 2012

आचार्य शंकर का अद्वैत वेदांत : ब्रम्ह विचार

           ब्रम्ह पूर्ण व एकमात्र सत्य है (( शेष सब मिथ्या )) वह स्वयं ज्ञान है . वह सर्वोच्च ज्ञान है . जिस ज्ञान से/ जिसके ज्ञान से संसार का ज्ञान जो मूलतः अज्ञान है समाप्त हो जाता है वह है ब्रम्ह ज्ञान . ब्रम्ह अनंत, सर्वव्यापी और सर्व शक्तिमान हैं . ब्रम्ह विश्व का कारण है (( आचार्य शंकर ने जगत को ब्रम्ह का परिमाण नहीं विवर्त के अर्थ मे कारण माना है ))..इस विवर्त से ब्रम्ह पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता . ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार एक जादूगर
अपनी हि जादूसे ठगा नहीं जाता / प्रभावित नहीं होता . अविद्या के कारण हि ब्रम्ह नाना रूपात्मक जगत मे दीखता है ...
           आचार्य शंकर ने ब्रम्ह को निर्गुण कहा है (( उपनिषदों मे सगुन व निर्गुण- ब्रम्ह के दोनो हि रूपों की व्याख्या हुई है...यद्यपि ब्रम्ह निर्गुण है फिर भी उसे शून्य नहीं माना जा सकता ..(( उपनिषदों मे भी निर्गुनों गुनी कह कर निर्गुण को भी गुन युक्त माना गया है )) ब्रम्ह दिक् काल की सीमा से परे है . ब्रम्ह पर कार्य कारण वाद का कारण नियम भी नहीं लागू होता ..यह उससे परे है
ब्रम्ह सभी भेदो से रहित है ..वेदांत दर्शन मे तीन भेद बताए गए हैं
१. सजातीय भेद (( एक हि प्रकार की वस्तुओं मे विद्यमान भेद ..उदाहरंतः दो गायों मे भेद ))
२. विजातीय भेद (( दो असमान वस्तुओं मे भेद ..उदाहरंतः ..एक गाय व घोड़े मे भेद ))
३. स्वागत भेद ((एक हि वस्तु व उसके अंशों मे विद्यमान भेद ..उदाहरंतः गाय के सींग व पूछ मे भेद ))
आचार्य शंकर ने ब्रम्ह को हि आत्मा कहा है  ब्रम्ह स्वतः सिद्ध है ..((आचार्य ने सिद्ध करने के लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं माना है..हाला कि उन्होंने कुछ प्रमाण दिये हैं )) शंकर का ब्रम्ह सत्य है ..सत्य वह है जो सभी विरोधों से मुक्त है .
ब्रम्ह व्यक्तित्व से रहित है . व्यक्तित्व मे आत्मा ( self )और अनात्मा ( not self )का भेद रहता है ब्रम्ह सभी प्रकार के भेदो से परे है इसीलिए उसे impersonal कहा गया है .
ब्रम्ह अपरिवर्तन शील है . उसका ना हि विकास होता है ना हि रूपांतरण . वह निरंतर एक समान हि रहता है .
शंकराचार्य जी ने ब्रम्ह को अनिर्वचनीय कहा है . ब्रम्ह को शब्दों से प्रकाशित करना असंभव है . ब्रम्ह को भावात्मक रूप से जानना भी संभव नहीं है .हम यह नहीं कह सकते कि ब्रम्ह क्या है ?? , अपितु यह जान पाते हैं कि ब्रम्ह क्या नहीं है ? उपनिषद मे ब्रम्ह को नेति नेति कह कर संबोधित किया गया है ..नेति नेति का शंकराचार्य के दर्शन मे इतना प्रभाव है कि वे ब्रम्ह को यह कहने के वजाय की ब्रम्ह एक है वे अद्वैत कहते है ....
ब्रम्ह की व्याख्या निषेधात्मक रूप से की जाती है शंकराचार्य जी ने ब्रम्ह के विषय मे यह भी कहा है वह सत् चित् आनन्द स्वरुप है (( हाला कि यह कहते हुए कि यह ब्रम्ह की अपूर्ण व्याख्या है ))

ब्रम्ह के अस्तित्व के प्रमाण :
१. शंकराचार्य जी के दर्शन का आधार उपनिषद , गीता तथा ब्रम्ह्सूत्र है ..इनमे ब्रम्ह के अस्तित्व का वर्णन है इसलिए ब्रम्ह है
२. शंकराचार्य जी के अनुसार ब्रम्ह सबकी आत्मा है ..जिसका अनुभव प्रत्येक व्यक्ति करता है ..अतः ब्रम्ह का अस्तित्व है ..यह मनोवैज्ञानिक प्रमाण कहलाता है .
३. जगत पूर्णतः व्यवस्थित है ..व्यवस्था का कारण जड़ नहीं हो सकता ...निश्चित रूप से एक चेतन कारण का अस्तित्व सिद्ध होता हि है वही ब्रम्ह है ..इसे प्रयोजनात्मक प्रमाण कहा जाता है
४. ब्रम्ह वृह धातु ( वृहति वृन्हति ब्रम्ह ) से बना है जिसका अर्थ है वृद्धि . ब्रम्ह से हि सम्पूर्ण जगत की उत्पत्ति हुई है . जगत के आधार के रूप मे ब्रम्ह की सत्ता इस प्रकार प्रमाणित होती है ..यह प्रमाण तात्विक प्रमाण कहा जाता है
५. ब्रम्ह के अस्तित्व का सबसे प्रबल प्रमाण अनुभूति है . वह अपरोक्षानुभूति के द्वारा जाना जा सकता है . अपरोक्ष अनुभूति के फलस्वरूप सभी प्रकार के द्वेत समाप्त हो जाते हैं ..और अद्वैत ब्रम्ह का साक्षात्कार होता है . तर्क या बुद्धि से ब्रम्ह का ज्ञान असंभव है क्योकि वह तर्क से परे है इसलिए अपरोक्ष अनुभूति -प्रमाण कहा गया है .
--- श्री अनिल कुमार त्रिवेदी

1 comment:

  1. संसार का कारण परमात्मा नही है | क्योंकि परमात्मा का कोई कारण नही है | इसलिए जिसका कोई कारण नही उसका कोई कार्य नही |परमात्मा न सगुण है न निर्गुण है | यह तो परमात्मा में पैदा अज्ञान है | परमात्मा अज्ञान नही है |बल्कि दो विरोधी धारा जिससे शक्ति बनी है वह माया है जिससे संसार बना है | संसार भी माया है स्वप्न है |

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