Saturday, March 16, 2013

હિંદુ શબ્દ

હિંદુ શબ્દ વૈદિક સાહિત્યમાં પ્રયુક્ત 'સિંધુ'નો તાદ્ભાવ રૂપ છે.વૈદિક સાહિત્ય માં "સપ્તસિંધુ" શબ્દ નો પ્રયોગ થયો છે. જે  સ્વાત, ગોમતી, કુંભા, વિતસ્તા, ચંદ્રભાગા, ઈરાવતી અને સિંધુ આ સાત નદીઓથી વ્યાપક પ્રદેશ નું સૂચક છે.

જુના સમયમાં વિદેશી લોકો ભારત ને એના ઉત્તર-પશ્ચિમ  માં વહેતી મહાનદી સિંધુ નાં નામે બોલાવતા હતા, જેને ઈરાનીઓએ હિંદુ અને યુંનાનીઓએ હિન્કાર નો લોપ કરીને "ઇન્ડોસ" કર્યું. ત્યાજ કાલાંતરે હિંદુ બન્યું અને વ્યાપક રૂપે પ્રચલિત છે. ભારતવર્ષ માં રહેરા "સમાજ" ને લોકો હિંદુ નામે જાણતા આવ્યા છે. હજાર વર્ષ થી અધિક સમય થઇ ચુક્યો છે, ભારતીય સમાજ, સંસ્કૃતિ, જાતું અને રાષ્ટ્ર ની ઓળખ માટે "હિંદુ" શબ્દ આખા વિશ્વ માં પ્રયોગ કરવામાં આવે છે.

વિદેશીઓએ પોતાની ઉચ્ચારણ સુવિધા માટે સિંધુ ને હિંદુ અથવા ઇન્દાસ કર્યું હતું, પણ આટલા માત્રથી આપના પૂર્વજોએ એને ત્યાજ્ય નથી માન્યું. હિંદુ જાતીએ હિંદુ શબ્દ ને ન કેવળ ગૌરવપૂર્વક સ્વીકાર્યો પણ હિન્દુત્વ ની લાજ રાખવા અને એના સંરક્ષણ માટે ભારી બલિદાન પણ આપ્યા છે.

અદભુત કોશ, હેમાંન્ત્કાવીકોશ, શામ્કોશ, શબ્દ-કલ્પદ્રુમ, પારિજાત હરણ નાટક, શાંગગર્ધર પધ્ધતિ, કાલિકા પુરાણ આદિ અનેક સંસ્કૃત ગ્રંથો માં હિંદુ શબ્દ નો પ્રયોગ જોવા મળે છે.  

ઈસા ની સાતમી શતાબ્દી માં ભારત માં આવેલ ચીની યાત્રી હ્યુએન્ત્સાન્ગે કયું છે કે અહીના લોકો ને "હિન્તું" નામે બોલાવાતા હતા. ચંદબર્દાઈ નાં પ્રીત્વીરાજ રાસો માં "હિંદુ" શબ્દ નો ભરપુર પ્રમાણમાં પ્રયોગ થયો છે. 

પૃથ્વીરાજ ચૌહાણ ને "હિંદુ અધિપતિ" સંબોધિત કરાયા છે. બિકાનેર નાં રાજકુમાર નામક કવીએ જે અકબરના દરબારમાં રહેતા હતા મારવાડી બોલી માં એક કવિતા દ્વારા મહારાણા ને અપીલ કરી હતી કે તમે એકલાજ હિંદુઓ નું નાક છો, હિંદુ જાતી ની લાજ તમારા હાથ માં છે. રાણા પ્રતાપે હિંદુ જાતી ની રક્ષા માટે અનેક કષ્ટો સહ્યા. એજ રીતે જ્યારે ઔરંગજેબ ને ચુઇથ્થિ લખી કહ્યું કે હું હિંદુ જાતી નો સરદાર છું માટે પહેલા મારા પર ઝઝીયા લગાવવાનું સાહસ કરો. 

સમર્થ ગુરુ રામદાસે ઘણા અભિમાન પૂર્વક હિંદુ અને હિન્દુસ્થાન શબ્દો નો પ્રયોગ કર્યો. શીવાજે હિન્દુત્વ ની રક્ષા ની પ્રેરણા આપી અને ગુરુ તેગબહાદુર અને ગુરુ ગોવિંદસિંહ તો હિન્દુત્વ માટે જીવ્યા અને માર્યા. ગુરુ ગોવીન્દ્સીન્હેં પોતાની સામે મહાન આદર્શ રાખ્યા- 
સકલ જગત મેં ખાલસા પંથ ગાજે |
જગે ધર્મ હિંદુ સકલ ભંડ ભાજે ||

વીર પેશવા, સુજાનસિંહ, જયસિંહ, રાણા બાપ્પા, રાણા સાંગા આદિ ઈતિહાસ પ્રસિદ્ધ વીરો અને દેશ્ભાક્તે હિંદુ કહેવાદાવાનું અને હિન્દુત્વ ની રક્ષા માટેનાં  સંઘર્ષ માં અભિમાન વ્યક્ત કર્યું. સ્વામી વિવેકાનંદે પોતાને ગર્વપૂર્વક હિંદુ કહ્યા હતા. તાત્પર્ય એ છે કે આપના દેશ ના  ઈતિહાસ માં હિંદુ કહેવડાવવાનું અને હિન્દુત્વ ની રક્ષા કરવી ઘણા ગર્વ અને અભિમાન ની વાત સમજવામાં આવે છે.

ભારતવર્ષ ને પ્રાચીન ઋષિઓએ "હિન્દુસ્થાન" નામ આપ્યું હતું જેનો અપભ્રંશ "હિન્દુસ્તાન" છે.
"બૃહસ્પતિ આગમ" ને અનુસાર: 
હિમાલય સમારભ્ય યાવત ઇન્દુ સરોવરમ |  
તં દેવનીર્મીતં દેશમ હિન્દુસ્થાનં પ્રચક્ષતે ||
   
 
हिंदू शब्द वैदिक साहित्य में प्रयुक्त ' सिंधु ' का तदभव रूप है | वैदिक साहित्य में " सप्तसिंधु " शब्द का प्रयोग हुआ है | जो स्वात, गोमती, कुम्भा, वितस्ता, चंद्रभागा, इरावती, सिंधु इन सात नदियों से व्यापक प्रदेश का सूचक है |


पुराने समय में विदेशी लोग भारत को उसके उत्तर- पश्चिम में बहने वाले महानद सिंधु के नाम से पुकारते थे, जिसे ईरानियो ने हिंदू और यूनानियो ने हंकार का लोप करके " इण्डोस " कहा | वही कालान्तर में हिंदू बना और व्यापक रूप से प्रचलित है | भारतवर्ष में रहने वाले " समाज "को लोग हिंदू नाम से ही जानते आये है | हज़ार वर्ष से भी अधिक समय हो चूका है, भारतीय समाज, संस्कृति, जाति और राष्ट्र की पहचान के लिये " हिंदू " शब्द सारे संसार में प्रयोग किया जा रहा है |


विदेशियों से अपनी उच्चारण सुविधा के लिये सिंधु का हिंदू या इण्डोस बनाया था, किन्तु इतने मात्र से हमारे पूर्वजों ने इसको त्याज्य नहीं माना | हिंदू जाति ने हिंदू शब्द को न केवल गौरवपूर्वक स्वीकार किया अपितु हिंदुत्व की लाज रखने और उसके संरक्षण के लिये भारी बलिदान भी दिए है |


अद्भुत कोष, हेमंतकविकोष, शमकोष,शब्द-कल्पद्रुम, पारिजात हरण नाटक. शाङ् र्गधर पद्धति, काली का पुराण आदि अनेक संस्कृत ग्रंथो में हिंदू शब्द का प्रयोग पाया जाता है |

 ईसा की सातवीं शताब्दी में भारत में आने वाले चीनी यात्री ह्वेंनसांग ने कहा की यह के लोगो को " हिंतू " नाम से पुकारा जाता था | चंदबरदाई के पृथ्वीराज रासो में " हिंदू " शब्द का प्रचुर प्रयोग हुआ है |

पृथ्वीराज चौहान को " हिंदू अधिपति " संबोधित किया गया है | बीकानेर के राजकुमार नामक कवि ने जो अकबर के दरबार में रहता था मारवाड़ी बोली में एक कविता के द्वारा महाराणा से अपील की थी की तुम अकेले हिन्दुओ की नाक हो, हिंदू जाति की लाज तुम्हारे हाथ में है | राणा प्रताप ने हिंदू जाति की रक्षा के लिये अनेक कष्ट सहे | इसी प्रकार जब औरगजेब ने हिन्दुओ पर अत्याचार करना शुरू किया तब उदयपुर के महाराजा राजसिंह ने औरंगजेब से चिट्ठी लिखकर कहा की मै हिंदू जाति का सरदार हू इसलिए पहले मुझपे जजिया लगाने का साहस करो |

 समर्थ गुरु रामदास ने बड़े अभिमान पूर्वक हिंदू और हिन्दुस्थान शब्दों का प्रयोग किया |

शिवाजी ने हिंदुत्व की रक्षा की प्रेरणा दी और गुरु तेग बहादुर और गुरु गोविन्द सिंह तो हिंदुत्व के लिये जिए और मरे | गुरु गोविन्द सिंह ने अपने सामने महान आदर्श रखा -

सकल जगत में खालसा पंथ गाजे |
जगे धर्म हिंदू सकल भंड भाजे ||

  वीर पेशवा, सुजान सिंह, जयसिंह, राणा बप्पा, राणा सांगा आदि इतिहास प्रसिद्ध वीरो और देशभक्तों ने हिंदू कहलाने और हिंदुत्व की रक्षा के लिये जूझने में अभिमान व्यक्त किया | स्वामी विवेकानंद ने अपने को गर्वपूर्वक हिंदू कहा था | तात्पर्य यह है की हमारे देश के इतिहास में हिंदू कहलाना और हिंदुत्व की रक्षा करना बड़े गर्व और अभिमान की बात समझी जातो थी |

भारतवर्ष को प्राचीन ऋषियों ने "हिन्दुस्थान" नाम दिया था जिसका अपभ्रंश "हिन्दुस्तान" है।


 "बृहस्पति आगम" के अनुसार:
हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। 

तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥



4 comments:

  1. भाई राहुल जी - नमस्ते !
    आपने अपने लेख – संग्रह में जितने भी प्रमाण दिये हैं वे सारे के सारे नवीन ग्रंथों के हैं या किसी विदेशी पुस्तक में से हैं | क्या आप ८ वीं शताब्दी से पूर्व की किसी भी संस्कृत पुस्तक में से हिन्दू शब्द दिखा सकते हैं ????
    जहाँ तक आपका यह कहना है कि हिन्दू शब्द सिन्धु का अपभ्रंश है तो ये विकारी अशुद्ध शब्द हम अपने धर्म का क्यों रखें ???? दूसरी बात, आज पाकिस्तान में सिन्धु नदी बह रही है उसका नाम आज भी सिन्धु ही है | सिन्धी भाषी अपने आपको सिन्धी ही कहते हैं ना की हिन्दी | पकिस्तान स्थित सिंध प्रांत आज भी सिंध ही है अतः यह कहना की सिन्धु का हिन्दू हो गया बिलकुल गलत है | इस देश का असली नाम आर्यावर्त था ना कि सप्त सिन्धु | जब हमने जान ही लिया कि हिन्दू का मूल सिन्धु है तो अपने धर्म का नाम सिन्धु क्यों नहीं कर लेते ?? सिन्धु शब्द कम से कम संस्कृत का तो है ही, लेकिन हिंदू शब्द संस्कृत भाषा का नहीं है |
    सिन्धु नदी के किनारे रहने वाला यदि हिन्दू कहलायेगा तो गंगा के किनारे रहने वाला गंगू कहलायेगा ???
    अद्भुत कोष, हेमंतकविकोष, शमकोष,शब्द-कल्पद्रुम, पारिजात हरण नाटक. शाङ् र्गधर पद्धति, काली का पुराण आदि समस्त संस्कृत ग्रंथो नवीन हैं ना की प्राचीन अतः इनमें आया हिंदू शब्द अमान्य है अशास्त्रीय है |

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  2. जहाँ तक आपने चीनी यात्री ह्वेंनसांग कि पुस्तक में हिन्दू शब्द का उल्लेख किया है तो यह भी विदेशी पुस्तक में ही उल्लेख कहलायेगा ना कि स्वदेशी | हिन्दू लोग जब संस्कृत ग्रंथों में से हिन्दू शब्द नहीं दिखला सकते तब उनको याद आती है हुयेन्-त्सांग की | हुयेन्-त्सांग एक चीनी यात्री था जो कि भारत में सातवीं सदी (लगभग सन् ६३०-४०), की शुरुआत में आया था, भारत में बौद्धों के स्थलों को देखने के लिए | हुयेन्-त्सांग भारत में १५ साल रहा और बहुत विस्तृत भाग में भ्रमण किया और लोगों से मिला, वापस लौटने पर उसने अपनी स्मृतियों को ग्रन्थबद्ध किया | इसमें महाराजा-हर्ष के समय की राजनैतिक, सामजिक, आर्थिक और धार्मिक स्थितियों का उल्लेख मिलता है | हुयेन्-त्सांग के समकालीन कवि था बाण-भट्ट जो हर्ष के राज्यकवि था, जिसने ‘हर्ष-चरित्र’ और ‘कादम्बरी’ नाम से पुस्तक लिखी लेकिन कमाल कि बात है कि इन तत्कालीन भारतीय ग्रन्थकारों के ग्रंथों में हिन्दू शब्द का नामोल्लेख नहीं होता | क्यों ??
    चीनी यात्री हुयेन्-त्सांग ने लिखा है कि - हिन्दू नाम प्रयोग केवल उत्तरीय जातियां ही करती हैं | भारत के उत्तर में तुर्किस्तान (तातार) और अफगानिस्तान देश हैं | इन आक्रमणकारियों ने हमें हिन्दू शब्द / नाम से संबोधित किया | हम इस विदेशी नाम को क्यों स्वीकार करें ?
    ऐतिहासिक साक्ष्य के आधार पर यह सर्वविदित है, कि गुप्त कालीन भारत पर विदेशी हुणों और शकों का आक्रमण होता रहता था | साथ ही गुप्तों की साम्राज्यवादी शक्ति को सबसे अधिक आघात पहुँचानेवाली घटनाओं में हुणों का आक्रमण भी प्रधान कारण था | हुण एक खूंखार, खाना-बदोश जाति के थे, जो मूलतः चीन के पड़ोसी माने जाते थे | ये अपने मूल आवास-स्थान से निकाल कर सारे फारस और अफगानिस्तान को रौंदते हुए गुप्त साम्राज्य के (संभवतः कुमारगुप्त के) समय में पश्चिमी भाग पर आक्रमण किये थे | किन्तु स्कन्दगुप्त की सामरिक कुशलता के आगे इनकी एक भी नहीं चली, और ये वापस लौट गये | किन्तु वे चुप नहीं बैठ गये, बल्कि कुछ दिनों के बाद पुनः वीं सदी ई.के अन्त में ‘तोरमाण’ के नेतृत्व में आ धमके | इस आक्रमण ने गुप्त साम्राज्य की रीढ़ ही तोड़ डाली | तोरमाण की चर्चा कल्हण-कृत राजतरंगिणी में और अन्यान्य अभिलेखों में भी पाई जाती है | इन प्रमाणों के आधार पर पता लगता है कि तोरमाण ने गुप्त साम्राज्य के बड़े-बड़े प्रान्तों को चीन लिया, और अन्त में मध्य भारत तक अपनी सत्ता स्थापित कर ली | उत्तरापथ में किये जाने वाले हुणों के आक्रमण के सम्बन्ध में ‘हर्षचरित’ में भी संकेत मिलता है |
    अब आप स्वयं निर्णय करे कि यह विदेशी नाम ‘हिन्दू’ शब्द हमलावरों द्वारा दिया गया है और उसी का उल्लेख चीनी यात्री हुयेन्-त्सांग ने लिखा ने अपने स्मृति ग्रन्थ में किया है | ५ वीं सदी में हुण आए और उसके बाद भी छुट-पुट आते रहे, भारत को ये लोग हिन्द कहते थे उसी का उल्लेख ७ वीं सदी के चीनी यात्री हुयेन्-त्सांग ने किया है |
    एक और बात, आपको हिन्दू शब्द ‘सिन्धु’ से बना या ‘इंदु’ से बना यह एक बार में निर्णय कर लेना चाहिए | ‘ये होगा-ये हो सकता है’ऐसा अनिर्णय वाचक वचन कहने से सुधि पाठक को भ्रम होता है, अविश्वास होता है | कोई कोई तर्क देते हैं कि हिन्दू शब्द/नाम शन्तु से बना और ये ‘इन्तु’ है, जिसका अर्थ होता है चन्द्र और हमें चन्द्रमा अति प्रिय है अतः हमारा नाम हिन्दू है | यह कहने और सुनने में बहुत प्रिय / रोचाक लगता है पर प्रश्न होता है कि क्या हमें सूर्य प्रिय नहीं है, हमारे पूर्वज सूर्य उपासक नहीं थे ? क्या हम नक्षत्र आदि को नहीं मानते, पुष्य नक्षत्र तो बहुत मान्य है तो धर्म का नाम सूर्य या पुष्य आदि क्यों नहीं ? सच्चाई यह है कि हमें व्यर्थ कि कल्पना लोक से बाहर निकाल कर शास्त्रीय नाम वैदिक / आर्य / सनातन को स्वीकार कर लेना चाहिए |
    चीनी यात्री हुयेन्-त्सांग के उपरोक्त प्रमाण से एक और बात सिद्ध हो रही है कि ये शब्द विदेशी है क्यों कि ये नाम/शब्द हमारे साहित्य में मिलता नहीं है यदि मिलता है तो कृपा कर प्रमाण दीजिए अन्यथा ये दर्शाता / सिद्ध करता है कि ये नाम विदेशी है |

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  3. चंदबरदाई के पृथ्वीराज रासो से लेकर पृथ्वीराज चौहान और बीकानेर के राजकुमार नामक कवि आदि सब मुस्लिम काल के थे अतः ये सारे प्रमाण नवीन हैं ना कि प्राचीन |
    समर्थ गुरु रामदास, शिवाजी, गुरु तेग बहादुर और गुरु गोविन्द सिंह, वीर पेशवा, सुजान सिंह, जयसिंह, राणा बप्पा, राणा सांगा आदि सब मुस्लिम काल के थे |
    धुम्रपानी और मांसाहारी स्वामी विवेकानंद ने अपने को गर्वपूर्वक हिंदू कहा होगा जरुर लेकिन उनके साहित्य में हिन्दू धर्म विरोधी अनेक वचन है जो कि उनकी हिन्दू धरम की कुसेवा बताती हैं |

    कृपा कर यह बताइए कि किस किस ऋषि ने कब कब और कहाँ कहाँ हिन्दुस्थान कहा / लिखा ????

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  4. जहाँ तक "बृहस्पति आगम" का प्रश्न है तो बृहस्पति आगम आधुनिक काल का ग्रन्थ है | कुछ लोग बृहस्पति आगम कि इस व्याख्या के आधार पर हिन्दू धर्म का पूर्ण स्वरुप बनाते है और कहते हैं कि हिन्दू का “हि” अर्थात् हिमालय और “न्दू” का इंदु | क्या ये पूर्ण स्वरुप हैं ? पूर्ण स्वरूप तो तब बनता जब हिन्दू के “हि” “न्” और “दु” का अर्थ बताया जाता | लेकिन पूर्ण स्वरुप बनाते ही प्रश्न होता है कि क्या हिन्दू शब्द किसी अन्य शब्द का संक्षिप्तिकरण हैं क्या ? यदि हाँ तो फिर उस तर्क का क्या होगा जिसमें तर्क देने वाले कहते हैं कि ये सिन्धु शब्द का विकारी है ? दोनों तर्कों में से एक को पसंद करना होगा, दोनों नहीं चलेंगे | लेकिन प्राचीन साहित्य में ना होना भी तो हिन्दू शब्द/नाम पर प्रश्न चिह्न लगाता है |

    हिन्दू शब्द का एक संक्षिप्तिकरण और देखिये :- “हि” “न्” “दु”
    “हि” अर्थात् हित ना करे वह
    “न्” अर्थात् न्याय ना करे वह
    “दु” अर्थात् दुष्टता करे वह
    और इसका प्रमाण निम्न श्लोक है :-
    हिन्दू शब्द की एक और व्याख्या देखिये जिसमें हिन्दू शब्द का निन्दित अर्थ दिया गया है |
    हितम् न्यायम् न कुर्याद्यो
    दुष्टतामेव आचरेत्
    स पापात्मा स दुष्टात्मा
    हिन्दू इत्युच्यते बुधै:||३/२१||
    आत्मानम् यो वदेत् हिन्दू
    स याति अधमां गतिम् |
    दृष्ट्वा स्पृष्ट्वा तु त हिन्दुं
    सद्य: स्नानमुपाचरेत् ||७/४७||
    हिंकारेण परीहार्य:
    नकारेण निषेधयेत् |
    दुत्कारेण विलोप्तव्य:
    यस्स हिन्दू सदास्मरेत् ||९/१२||
    इति कात्थक्य: शिवस्मृतौ
    शिव स्मृति
    (जो हित और न्याय ना करे, दुष्टता का आचरण करे, वह पापी, वह दुष्टात्मा हिन्दू कहलाते हैं)
    (जो व्यक्ति अपने आप को हिन्दू कहता है वह अधम गति को प्राप्त होता है और ऐसे हिन्दू को देख कर स्पर्श कर शीघ्र ही स्नान करें)
    (हिं हिं करके जिसका परिहार करना चाहिए, न न करके जिसका निषेध करना चाहिए, दूत् दूत् करके जिसे दूर भगाना (नष्ट कर देना) चाहिए वही हिन्दू है इसे सदा याद रखें)

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